गिद्ध और गौरेया
गिद्ध और गौरेया
नन्ही मुन्नी गौरैया
फुदकती डाली-डाली
उड़ती, दाना चुगती
सुंदर सी, मतवाली।
इठलाती-बलखाती
नन्ही नन्ही, चोंचों से
बात किया करती हैं
पेड़ों की आबादी को
आबाद किया करती हैं।
उसकी मुस्कराहट पर
डाल के सब पंछी
मंद-मंद मुस्काते हैं
धुन बना एक सा कभी
साथ साथ गाते हैं।
गिद्धों का आ जाना
उन्हें बहुत डराता है
जिसका मकसद सिर्फ
आतंक, शोर, फैलाना है।
कभी झुंड में, कभी अकेले
ये अकस्मात, आ जाते हैं
नन्ही मुन्नी, गौरैयों को
चीर फाड़कर जाते हैं।
इनके आतंक से
अक्सर घोंसले से भी
निकलने को डरती गौरैया।
कैसे बेटी बचे, बेटी पढ़े
कौन गिद्ध सा, मंडराता है
सोच रहे क्यों, अपने बारे में
समाज से भी, अपना नाता है।
काट पंख, गिद्धों के अब
गौरैयों को आज़ादी से उड़ना होगा
आधी आबादी के सम्मान का
तब सच सारा सपना होगा।