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अजय '' बनारसी ''

Tragedy

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अजय '' बनारसी ''

Tragedy

दो शब्द

दो शब्द

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दो शब्द,उसने कहा

और दूसरे उसने चालाकी से

उसे लोगों तक फैला दिया

शहर जलने लगा

धू धू जलने लगा


मीडिया खोज में

कहाँ बाइट ज्यादा मिलेगी

कैसे मिलेगी

संपादन जारी

सबको अपने पेट की पड़ी है

उधर शहर जल रहा है।


वह, अब 

प्राइम डिबेट में

बैठा है

कमाई जोरो पर हो रही है

चैनल को देखा जा रहा है


जो टीवी पर नहीं देख रहे

वो, अँगूठे से स्वाइप करते हुए

दोनों अंगूठों की मदद से 

लिख रहे हैं, 

बोल रहे हैं

चर्चा तेज़ हो गयी है

लपटें शहर से गांव 

होते हुये देश को 

लपेट रही है 

लोग मर रहें हैं


लेकिन,

रोटी चल निकली है

घी के साथ

वह खुश है आज 

बॉस ने कहा वेरी गुड

ऐसे एक दिन चैनल को

ऊँचाई पर ले जाओगे


वह भी खुश है

जिसने अँगूठे की मदद से

लिखा था इस बारे में

कई लोगों ने

अपनी तर्जनी से

लाइक की भरमार कर दी

कुछ अंगूठेबाज़ तो

तारीफ़ के पूल बांध दिये


वह गिरफ्तार कर लिया गया

महंगे वकीलों का काफ़िला

बहस-जिरह साफ बच गया

बोलने से कहाँ कोई जलता है

साहब, उसके लिये लकड़ी चाहिये

दियासलाई चाहिए

जिरह , कारगर 

सबूतों के अभाव में

वह छूट गया

टीवी पर 

फिर बदल गया, प्राइम न्यूज़

किसी अभिनेता का कुत्ता खो गया है

बाइट के इंतज़ार में 

भटक रहे हैं छुपा कैमरा लिये

कोई और बोले दो शब्द

उसका भी परमोशन हो

जैसे पिछली घटना से वह

रातो रात रुपयों की ढेर पर बैठ गया


अरे हाँ

कुछ परेशान भी हैं

जिनकी ज़िंदगी रुक गयी है

जिनके छप्पर जल गये

रोटी देने वाला छीन गया

उनसे दो शब्द फुर्सत के समय

में बोलने वाला छिन गया

ऐसे एक नहीं कई हैं

गिनती करना मुश्किल है

लाइक कमेंट की गिनती

ऑटोमैटिक है

इसे गिनने वाला कोई नहीं

आंकड़े तक बदल दिये जाते हैं


क्या फर्क पड़ता है

दो शब्द ही तो हैं

कोई आसानी से कह लेता है

किसी के कहने वाले को छीन लेता है।




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