गाँव की दिवाली
गाँव की दिवाली
वो आम सा पेड़ वो बरगद की
डाली सुनी पड़ी है इस बार की दिवाली
चौखट पे मेरे बनी हैं रंगोली
बूढ़े पैरों ने बनाई है मिठाई
वो सर्दी की रातें, परियों की कहानी
गुम सुम पड़ी है, दादी की ज़ुबानी
पुराने कपड़ों से सजी है अलमारी
आँगन की रोनक, कहाँ है खुशहाली
पड़ोस के घर पे छाई ख़ामोशी
करता नहीं कोई बच्चों सी शैतानी
अशुद्धि से लथपथ गंगा का पानी
व्यसन से चूर है देश की जवानी
खेतों में लुप्त हुई इस बार हरियाली
रूठी है बारिश हुई पेड़ों की रुस्वाई
गाँवों की आँच पे जल रही है उपनगरी
तंदूर की भट्टी से भली है ये सगड़ी
बचा लो हमें, हम है शहरों के विधाता
गाँव की रूह में बसा ये देश हमारा
झुर्रियों से भरकर उम्र हुई हमारी
शहरों को कह दो, "जान बचाये हमारी"
वो आम सा पेड़ वो बरगद की डाली
सुनी पड़ी है इस बार दिवाली।।
