एक थी लड़की
एक थी लड़की
जिंदगी ने बहुत खुशियाँ दी है उसे
जिंदगी ने रुलाया भी है
जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया भी है उसे
आज जब कुछ रूक कर देखती है वो
तो वक़्त साथ देती दिखाई नहीं पड़ती
काश वक़्त को पीछे मोड़ लेती
तो शायद जिंदगी कुछ और ही रंग में ढली होती"
मुद्दतों बाद वो शुरू की लिखना
दिल में दफ्न कर दी थी खुद की कहानी
बचपन से संजोए ख्वाब थे उसने
ख्वाबों को पंख लगा
चांद तारों को पाना था उसे
मां की दुलारी पिता की लाडली
जाने कब पराई हो गई
और मायके से ससुराल का सफर तय कर गई
पर ना जाने क्यों प्रियतम के दिल में ना रह सकी
वो अपना प्यार थी खो चुकी
वजह थी उसकी बेवकूफी नादानी
जो था हमसफ़र उसका
दूर था उससे जा चुका
पर अब खोने को क्या था उस बावली का
आंसू और कुछ नहीं था उसका
हां चाहतीं थीं बस इतना वो
हमदम हर पल साथ हो
आंखें बंद हो फिर भी वो पास हो
पर उस मनमीत को था कुछ और मंजूर
उसका रास्ता था कहीं अलग कहीं दूर
आजाद पंछी बन था उड़ना उसे
आसमां को छूना था उसे
वो पगली इतना भी ना समझ सकी
और ज़िंदगी के सपने थी बुनने लगी
वो अल्हड़ सी लड़की अब बड़ी हो गई
अनुभवों से जीना थी सीख चुकी
थी जान गई अकेले चलना ही जिंदगी है
तो "खुद की ताक़त" बन
जिंदगी की कश्ती आगे बढ़ाती चल पड़ी
इस लम्हे में जीने की है कोशिश कर रही
क्या पता जिंदगी एक बार फिर
खुशियों के रंगों से भीगो दे
क्या पता वक़्त एक बार फिर
जीने की वजह दे दे!!!