एक सूरज की रोशनी के ख्वाब
एक सूरज की रोशनी के ख्वाब
अभी से क्या
कभी से थी यह बात
दीवार दिलों के बीच नहीं
दीवार में चिनवा डाले उसने
मेरे तो सारे ख्वाब
दीवार में बना
वह आला
कभी से
एक सूरज की रोशनी के
ख्वाब देखता था
अंधेरों की खुदगर्जी और
हुकूमत ने तो
एक उसमें रखे जलते दीये की लौ
के भी
बुझा डाले जलते बुझते
अरमान।