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KARAN KOVIND

Tragedy Inspirational Thriller

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KARAN KOVIND

Tragedy Inspirational Thriller

एक दिन का, गिरा हुआ इंसान

एक दिन का, गिरा हुआ इंसान

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जब कोई इंसान गिरता है 

तो गिरती है कितनी आशाये

उसके ह्रदय की सरीखी से गिर जाती है

कई बासायी हुयी बस्ती या

उसके जेबों से गिरती है सपनो की पत्तीयां


मैंने देखा जब कोई गिरता है तो

आसमान से गिरती है आंधियां

और हवाओं के साथ चलती है बादले

और होने लगती है ताने बाजियां

जब जब वह गिरा गिराता गया अपनी सभी 

प्रिय चीजें


अपने जीवन कि वह वेरंग पल

रातों कि बचायी हुयी नींदें

दिन के वेदर्द श्रम के मौसम

और बेथाह भूख कि प्यास

वह उसे उठाना चाहता 


पर जब गिरता है कोई इंसान तो 

उसके गिरे हुए चीजे जाती है बिखर और

उसे चुनना में लगता है समय

इसलिए एक दिन का गिरा हुआ इंसान

गिरता नहीं वह उठता है दूसरे दिन कि खोज में


और वह छोड़ देता है अपनी पहले दिन कि गिरी हुती चीजें

जिसे उसने गिरते वक्त गिरायी थी।


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