दुनिया मे कोई नही सगा
दुनिया मे कोई नही सगा
दुनिया मे कोई नही यहां अपना सगा है
सबके सब लोग ही देते यहां पर दगा है
सब रिश्तों ने बस मुझको ही ठगा है
हाथ मिलानेवाले ने ही पकड़ा गला है
अब तो अक्षु आना भी बंद हो गये,
लोगों ने जो अपना कहकर छला है
दुनिया मे कोई नही यहां अपना सगा है
सबके सब लोग ही देते यहां पर दगा है
काजल की तरह यहां रिश्ते काले है,
अपने ही लोग लबों पे लगाते ताले है
कृष्ण रंग से ज्यादा तो यहां दिल काले है
सबने दिये यहाँ तानों से जख़्म निराले है
काम होता तो गधे को सर बैठा लेते है,
ऐसे लोगो से आजकल पड़ रहे पाले है
दुनिया मे कोई नही यहां अपना सगा है
सबके सब लोग ही यहां पर देते दगा है
लोगो को मूर्ख बनाना आजकल कला है
जख्मों पे नमक लगाना आजकल अदा है
सच्चे लोगों का बजा रहे लोग तबला है
और अपने को समझ रहे वो महामना है
दुनिया मे स्वार्थ ही स्वार्थ बहुत चला है
निश्छलता को लोग समझते एक बला है
दुनिया मे कोई नही यहां अपना सगा है
सबके सब लोग ही देते यहां पर दगा है
पर पानी होता जग में वो ही निर्मला है
जिसका हृदय होता साफ-सुथरा तला है
दुनिया मे चाहे कोई नही अपना सगा है
पर खुद का हौंसला ही होता बहुत बढ़ा है
जिसने रखा साखी खुद पर ही भरोसा,
उसका तो खुदा ने भी किया भला है।