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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"शादी"

"शादी"

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शादी जीवन का होता एक ऐसा अहसास है।

मिल जाता है,कोई जिसकी वर्षों से तलाश है।।

अधूरे से हो जाता है,पूर्ण उसका अवकाश है।

विवाह तो कुंवारों के लिए एक अमृत प्यास है।।


पहले के समय विवाह होते थे बहुत खास है।

मानते थे,वो इसे जन्मों के बंधन की सांस है।।

शादी किसी के हो,पूरे गांव में होता आह्लाद है।

पर आज खो गया,विवाह का कहीं वो रास है।।


शुरू में लगता दूल्हे को वो उड़ रहा आकाश है।

पर कुछ समय बाद लगता शादी तो बकवास है।।

मिट जाती आजादी छूट जाते मित्र आसपास है।

रह जाता,भरी महफ़िल में अकेला,शादी बाद है।।


वर्तमान परिवेश में हो रहे,जो आज तलाक है।

इसका कारण टूटते हुए,सारे संयुक्त परिवार है

।।

अब न रही आज आंख दिखाने वाली सास है।

आजकल समाज भी हो गया बहुत बदमाश है।।


यदि तुम्हे जीवनसाथी नही मिले,समझदार है।

फिर सोचो तुम ये शादी कितनी खतरनाक है।।

इससे अच्छा होता शादी न करता तू काश है।

कुंआरा रहना मतलब तू एक पंछी आजाद है।।


पर साखी शादी उनका ही करती सत्यानाश है।

जो नासमझ परायों की बातों पर करे विश्वास है।।

जो तेरे लिए आये,उनका समझ एकबार त्याग है।

जिंदगी में विवाह लगेगा नही तुझे एक आग है।।


यदि सासुजी भी बहुओं को बेटी मान ले काश है।

फिर क्यों टूटेगा,भला किसी भी घर का कांच है।।

ननद भी भाभी को माने बहिन सदृश समास है।

सच मे फिर बहुएं क्यों करेगी मायके की याद है।।



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