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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

"आलस्य"

"आलस्य"

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गिरते है, वो व्यक्ति जरूर ही गर्त

जो आलस्य को मानते है, सुखद

उनको नही होता है, जरा भी दर्द

जमाना चाहे कितने ताने दे, नगद


वही कामचोरी को मानते है, स्वर्ग

जो परिश्रम करना मानते है, दुःखद

कितने ही बहानों की बनाएं, इमारत

कामचोर कभी होते नही है, सफल


उनके जीवन का न होता कोई, अर्थ

ऐसे आते, ऐसे मर जाते, आलसी खर्च

सही वक्त पर जो सही करते है, कर्म

वे एकदिन बनते है, जीवन मे समर्थ


वो व्यक्ति जीते जी ही पाते है, नर्क

आलस्य ही जिनका जीवन मकसद

जो व्यक्ति कर्म करता है, बिना शर्त

उन आंखों के अक्षु भी होते है, अर्क


तेरे ऊपर है, मनुष्य सबकुछ निर्भर

तू क्या चाहता है, आलस्य या निर्झर

जो मनु कर्म करता रहता है, निरंतर

वो तारे तक गिन सकता है, अम्बर



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