"दर्द"
"दर्द"
अपने दर्द को आज मैंने, कुछ यूं समेटा है
दर्द भी आजकल मुझको दर्द नही देता है
अपनों के ज़ख्मों से आज दर्द भी लेटा है
आज दर्द भी हुआ, इक लावारिस बेटा है
जिन लोगों को कभी में अपना कहता था
आज उन्ही के कारण दिल दुःखी रहता है
मुफ़लिसी में तन का वस्त्र ही जख्म देता है
दर्द हो गया, यकीं तोड़ने वालों का चहेता है
मेरे रुपये-पैसे लूट गये, कोई बात नही
उन्होंने दिया दगा, जिनकी औकात नही
क्यों बना उनका सगा, जो तुझसे जलता है
अब यह निखट्टू दर्द भी मुझ पर हंसता है
आज इस दर्द ने सबक दिया, कुछ ऐसा है
उनसे दूर रह, जिन मन मल ऐसा-वैसा है
दर्द ने बना दिया, साखी को भी अब नेता है
दिखावे का प्रेम कर बस, तू दुनिया मे बेटा है
इस दर्द का नही, खुशियों का बन तू क्रेता है
छोड़ दे, व्यर्थ लोगों से मन लगाने में भेजा है
तूने नही ले रखा, पूरे ज़माने भर का ठेका है
खुदी मे खुश रह, तेरे भीतर दरिया बहता है