"कर्तव्य पथ पर"
"कर्तव्य पथ पर"
कर्तव्य पथ पर, अपने तू चलता चल
लक्ष्य हेतु,भूख, प्यास सब भूलता चल
अपने इरादों को बना, तू इतना अटल
तेरी खुद की आग से जले, अब अनल
जितना करेगा श्रम, उतना मिलेगा फल
आलस्य से कब मिला है, मंजिल महल
दुनिया मे वही हुआ है, आज तक सफल
जिसने सही वक्त पर कर्म किया, असल
छोड़ दे साखी तू, दूसरी की करना नकल
तेरी करनी से मिलेगा, तुझे सफलता जल
जो बाधा कसौटी पर कसे, खुद को हरपल
वही एकदिन चमकता है, बनकर कुन्तल
कर्तव्य पथ पर आये, चाहे तेरे लाख बाधा
तूने खुद से किया, कुछकर गुजरने का वादा
वही खिलाता है, दुनिया के दलदल में कमल
जिसने कर रखी, अपनी इस मति को निर्मल
अमृत मिलना नही है, कोई इतना सरल
इसके लिए पीना पड़ता है, पहले गरल
जिसे कठिनाई विष पीने की हो अक्ल
उसने ही खोजा, खुद के भीतर सुधा जल
