दुल्हन
दुल्हन
वो सपनों में नयी नवेली
दुल्हन बनकर आती है
मुखड़े से वो हटा के घूंघट
मन्द मन्द मुस्काती है।।
पायल की छम-छम ध्वनि कर
मेरा चैन चुराती है
सोते समय लिपट मेरे तन से
मेरी नींद उड़ाती है।।
चूड़ी कंगन कुण्डल नथिया देख
चांदनी शर्माती है
उसके गमन से सुन्दरता से
लगता गजभार्या जाती है।।
पलट जो जाती उठा के पल्लू
मानो वसन्त का सुमन खिलाती है
केशों को लहराती मानो
बादल नूतन लाती है।।
