दर्द(गजल)
दर्द(गजल)
गरीब रोता रहा बेरहमी से
किसी ने हंसाया नहीं,
आंसू बहते रहे दर्द बन कर
किसी ने उन्हें छुपाया नहीं।
खामोशी से दर्द सहता रहा
किसी को जख्म दिखाया नहीं।
सुनते रहे रोने की आबाज सभी गौर से,
बिन पूछे किस्सा किसी को सुनाया नहीं।
नफरतों से भरे दिखे सब के सब,
किसी ने प्यार से बुलाया नहीं।
मुजरिम जुर्म कर के भी हो गये बरी,
बेगुनाह को किसी ने बचाया नहीं।
जान कर भी के बेकसूर है रोने वाला,
इल्जाम झूठा उसका हटाया नहीं।
कौन कहता है इन्साफ है लोगों की अदालत में सुदर्शन,
जी भर कर किसी ने आजमाया नहीं।
चकनाचूर हो गया अदालत में
जा जा कर बचा कोई नहीं
जिसका दरबाजा खटखटाया नहीं।
आस बधीं है आखिर उसी
परवरदिगार पर सुदर्शन,
जिसको किसी जज ने आजमाया नहीं।