दीवारें तक रही थीं घर की
दीवारें तक रही थीं घर की
दीवारें तक रही थीं कि बेटा पढ़कर आएगा कम से कम कुछ दिन के लिए साल में एक दिन अपने घर
दीवारें तक रही थी कि अब बाप की आमदनी से नहीं बच्चे की कमाई से रँगाई होगी एक दिन ये घर ...
दीवारें तक रही थी की कुछ लोगों को भोजन कराया जाएगा इस चहारदीवारी में उस दिन शान से बड़ा होगा ये घर ...
दीवारें तक रही थी कि कोई नन्ही की जीवन की लौ सुनाई देगी
कभी के कभी जेबी बच्चों के बच्चे की आवाज सुनाई देगी इस घर...
दीवारें इंतज़ार में जर्जर होती चली जा रही थीं हर एक दिन के गुज़रने पर
कभी रिश्तों की मजबूती से मजबूत होगा ये घर..... .
वो दीवारें गिर पड़ी आज और बच्चा पढ़ने के बाद
कभी बच्चा बन लौटा ही नहीं इंतजार में टूट गया ये घर.....
अब बड़े हो गए बच्चे ...
नई दीवार नई पीढ़ी नए उसूल...
पर वक़्त है...
अपना हिसाब पूरा करेगा क्या आस में था ये घर ...
पर माँ बाप ने बच्चे को बद्दुआ न दी कभी उन दीवारों में अकेले ही रहकर
इंतजार में दम तोड़ने से पहले चीख चीखकर रो पाड़ा ये घर ...
उन्होंने हर दुआ में उसकी सलामती की दुआ माँगी कितने सपने संजोये
दीवार के सांग कितने अरमानों से बनाया था ये घर ......
आप क्या कर रहे हैं आज जब इनके कर्ज चुकाने की बारी आई तो कह दिया बेकार है अब बेच दो ये घर ..... .
आज दीवारों में भी जान आ गयी लड़ने लगा आज वो घर दीवारें भी
आज बोल पड़ी क्या भूल गए तुम तेरे बचपन की यादों को इस घर ने संजोया है...
इस घर को बनाने में तेरे मां बाप ने क्या क्या दुख उठाये और
क्या क्या सहकर रोया है और कभी कभी भूखे पेट ही सोया है......
बता जरा मेरे उपायों की क्या कीमत तू देगा क्या तुझसे
तेरी बचपन की यादें और ये मां बाप का बलिदान देकर बनाया ये घर बेचा जाएगा....
यही वो आंगन है जिसमें तू चलाना सिखा था यही वो दीवारें है
जिसपर तू लिखा करता था कभी चित्र बनाया करता था यही वो घर है जहां से तू पढ़ने गया था ......
आज तू मुझको बीच रहा है तू अपना कागज के कुछ टुकड़ों में दीवार में नहीं
तू है जो बिक गया रुपये में जा अब मैं कुछ नहीं बोलूंगा इतना कहक घर पड़ा वो घर.....
देखकर अपने एहसास का बदला टूटा बिखरा टुकड़े रे टुकड़े में वो दीवाना
रो रो के अंदर ही अंदर मर गया वो घर ......
