दीप जल उठे
दीप जल उठे
हे कर्तार !
करता है आज यह,
जग तुझे उर से नमन,
मिलती हैं सौरभ यहीं हमें,
विपुल पुलक राह की।
हे परमपिता !
तेरी अद्भुत देन यह,
हर इंसान होता,
मुख़्तलिफ़ अपने आप में।
गोचर रहा दीपक-सा,
प्रकाश हर प्राणी में,
मानो है वो वैजंती,
माला का प्रमुख मोती।
जगमगा रही है,
उस दीपक से संपूर्ण धरा ,
युग-युग प्रतिदिन प्रतिपल ।
