STORYMIRROR

दीप जल उठे

दीप जल उठे

1 min
838


हे कर्तार !

करता है आज यह,

जग तुझे उर से नमन,

मिलती हैं सौरभ यहीं हमें,

विपुल पुलक राह की।


हे परमपिता !

तेरी अद्भुत देन यह,

हर इंसान होता,

मुख़्तलिफ़ अपने आप में।


गोचर रहा दीपक-सा,

प्रकाश हर प्राणी में,

मानो है वो वैजंती,

माला का प्रमुख मोती।


जगमगा रही है,

उस दीपक से संपूर्ण धरा ,

युग-युग प्रतिदिन प्रतिपल ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama