बारिश
बारिश
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कुछ कहती चली मैं
हवा के झोंके संग,
मैं बारिश, तुझे एकाएक
देखती चली ऐ राही,
भारती का जयशंख
बजाकर लाती रंग।
खुद बेरंगीन हो कर लौटा दी
मैंने धरती की चमक,
आँसू बहाते चली मैं,
जब छीन लिया तुमने
मेरे अधिकार,
अगर आज न समझ पायो,
तो दिखेगा तुझे मेरा तमक।
लो-पथ-गामिनी का सफ़र
तुम संग निराला।
एक एक मेंह बूंद तुम्हारे
सम्पर्क में राही मानो
वैजंती माला का मोती,
रंगीन यादों में करती मैं
मेरे पदचिन्ह,
छोड़ती चलती इस मोड़
से गुज़रने का चिन्ह।
