अनकहीं बाते
अनकहीं बाते
आओ सुनातीं मैं गल्प जिन्दगी की,
दिल के एक कोने में छिपी बातों को आज मैं बतलाती।
मैं कहती चलती मेरे लिए तो जिन्दगी ही मेरा दिन आज है,
यही जीने का मेरा राज है।
चेहरे पर मुस्कान है, आँखो में नमी नहीं,
जुबाँ पर कहने को हैबहुत कुछ, पर कभी लब्जों में बयां नहीं करती।
खेलती चलती मैं शब्दों से,
कभी गिरती, कभी उठती खुद ही खुद से लड़ती चलती।
पलकें बिछाएँ खुद को खोजती बातों में,
अरमानों की चादर ओढ सोती रातों में।
बनती चलती खुद की दोस्त जिन्दगी की मुसाफात में,
खुद से हारने को कहती आफत मैं।
बाते है कुछ अनकहीं सी,
शब्दों के इस मेले में लिखती चलती वहीं कहानियाँ।
बस शब्दों के इस खेल में खुद को पहचान जाती,
मैं पागल न जाने क्यों खुद से प्यार कर बैठती।