धूल की भाँति
धूल की भाँति
यूँ तो एक बड़ी ज़िन्दगी कभी नहीं थी हमारी
पर काम करते थे हम अपने देश के लिए ,
अपने माटी के लिए साँझा किया ईमानदारी।
एक कोने में छाया ही को माना था
आश्रय कुछ अपना सा,
महलों की कामना तो तब भी नहीं थी हमारी।
ईंटों को जोड़ा, सीमेंट के जोड़ से
भले ही धूल मिट्टी में सोना पड़े
सड़कों का निर्माण किया था तब
उसी में विलीन हो रहे है
ऐसा प्रतीत होता सा लग रहा अब
महलों की कामना तो कभी नहीं थी हमारी !
लोगों ने हमें समझा नहीं कभी अपना
इतनी हिचकिचाहट अभी क्यूँ हो रही है
हमारे लिए कुछ करो तुम ये तो है एक सपना
बस सांस चले इतना ही समझ कर कुछ करना
उन बड़े महलों में कभी समझोगे भी की नहीं
महलों की कामना तो कभी नहीं थी हमारी!
तुम शौक से खान पान करते हो
पर उनका क्या ज़िंदा रहने के लिए
दो रोटी भी जिन्हे नसीब न हो ?
जिस मिट्टी के लिए खून पसीना एक किया
आज उसने ही हमें पराया कर दिया
महलों की कामना तो कभी नहीं थी हमारी !