देह -जरूरत के लिए
देह -जरूरत के लिए
जब भी मैं किसी समारोह में और सम्मेलनों में जाता हूँ मुझे अकुलाहट होती है...
मेरे साथ भी एक खूबसूरत और बुद्धिमान महिला हो जिसके संग मैं लोगों में इठला सकूँ...
लेकिन मेरे साथ अरेंज्ड मैरिज वाली पत्नी होती है...
लहसुन प्याज में महकती हुयी...
जो गृहस्थी की बातें ही जानती है ...
बच्चों की बातें.....
टीवी की बातें....
आसपड़ोस की बातें....
बस ऐसी ही कुछ और बातें....
वह मेरे साथ रात में होती है
सिर्फ देह के रूप में.....
शरीर की जरूरत भर के लिए.....
मन और बुद्धिमत्ता की चाह
में मेरी निगाहें भटकती रहती है...
जहाँ तहाँ 'किसी' के साथ के लिए...
मेरा मन अकुलाता रहता है....
औऱ आख़िरकार मैं 'उसे' पा लेता हूँ...
'उसे' सेमिनारों में साथ ले जाने लगता हूँ...
उसके साथ जी भर भटकता हुँ सम्मेलनों में...
उसके संग लोगों के बीच इठलाता हुँ...
लेकिन यह क्या?
मेरी उस 'सखी' में मौजूद 'औरत' एक दिन जाग उठती है...
वह मुझसे अधिकार की बात करने लगती है...
एकसाथ अधिकार और इठलाना !!!
नही!!!
मेरा मन फिर अकुलाता रहता है....
मुझे तुम ही चाहिए....
फिर वही देह वाली स्त्री...
जो रात में मुझे साथ दे सके...
शरीर की जरूरत भर के लिए.....