चारों ओर नारा था आजादी का
चारों ओर नारा था आजादी का
वो वक्त था कैसा,
जो दीवाने थे आजादी का।
वो वक्त था कैसा,
जो परवाने थे आजादी का।
वो वक्त था कैसा,
जो जान न्योछावर था आजादी का।
वो वक्त था कैसा ,
जो चारों ओर नारा था आजादी का।
कैसी थी गुलामी,
थी क्या दशा उनकी,
कैसी थी जीवन शैली,
थी क्या उनकी जिंदगी,
क्या खुलकर वो हंस पाते थे,
क्या मिल पाता था ,
हर वो चीज उनके पसंद का,
चारों ओर नारा था आजादी का।
थी गरीबी हर तरफ,
थी फैली चारों ओर नफरत,
जो थे पढ़े लिखे थोड़े बहुत,
वो अफसर थे अंग्रेजों का,
जो थे चालाक थोड़े बहुत,
वो चापलूस थे अंग्रेजों का,
अंग्रेजों का बोलबाला था,
अंग्रेजों का ही चलता था,
जो थे इनके विपरीत ,
>उनका तो दिन काला था,
अंग्रेजों से हो भारत का पड़ गया पाला था,
चारों ओर आजादी का नारा था।
कैसे मिली आजादी,
है एहसास हम सबको,
कैसे लड़े अंग्रेजों से,
है सोच हम सबको,
कैसे लटक गए फांसी पे,
है सिहरन हम सबको,
कितनों की गई जानें,
हैं मतलब हम सबको,
वो भी दिन था कैसा,
कैसे थे दीवाने आजादी का,
चारों ओर नारा था आजादी का।
15 अगस्त 1947 को,
था आजाद हुआ देश हमारा,
उन बलिदानों को भूल गए,
जो लौट के आए नहीं दुबारा,
अब नहीं है बनना,
गुलाम भ्रष्टाचारों का,
अब नहीं है बनना,
गुलाम अफशरसाही का,
अब नहीं है बनना,
गुलाम अशिक्षा का,
चारों ओर नारा था आजादी का,
चारों ओर नारा था आजादी का।