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Dr Mohsin Khan

Abstract

4.5  

Dr Mohsin Khan

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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क्यों मुझे बार-बार ठुकराया जा रहा है।

बेवजह बातों से आज़्माया जा रहा है।


अक्स मेरी शख़्सियत का न देगा तार्रुफ़,

उसपे आईना धुंधला दिखाया जा रहा है।


किसी को मिली मायूसी और शिकस्त,

कहीं फ़तेह का जश्न मनाया जा रहा है।


तौहीन करने का अच्छा तरीका है उसका,

फिर से वही सवाल दोहराया जा रहा है।


'तनहा' थककर लौट आए फिर ठिकाने पे,

अब गहरी नींद से क्यों जगाया जा रहा है।


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