डरावनी सी एक लड़की...।
डरावनी सी एक लड़की...।
खुद में खोई हुई बिखरे से बालों वाली,
जो सोचती वहीं हूबहू बना देती,
उलझी हुई विचारो में रहती,
खुद से घंटों बातें किया करती,
पूछने पर हल्का सा मुस्कुरा देती,
फिर किसी कोने में जा बैठ जाती,
सब कहते पागल सी है,
न जाने क्या बकबक करती है,
कभी कभी तो कुछ लिखती हैं,
यही कहीं पन्ने पड़े होंगे उनमें कुछ लिखा होगा,
देख उन पन्नों को जब पढ़ना शुरू किया,
आंखों में आंसू थे और मन में पछतावा,
लिखी हुई अपनी ही कहानी थी,
जिसकी लिखावट में छुपा गहरा भावार्थ था,
हर किसी को समझने की कला नहीं आती,
तभी तो लिखी सच्चाई किसी को नजर नहीं आती,
कुछ यूं लिखा था उन पन्नों में....
मैंने देखी है दुनिया,
जीया है उन अनमोल पलों को,
छूकर महसूस किया था,
पर अब बाहर निकलने से कांपती हूं,
कोई देखता रहता है मुझे घूर के,
और करता पास आने की कोशिश,
यह देख शरीर का रोम रोम कांप उठता,
और मैं सहमी सी एक कोने में बैठ जाती,
जरा सी आहट मेरे दिल में घर कर जाती,
पता नहीं कब वो आकर मुझे जकड़ ले,
और मुझे बंद दरवाजों में कैद कर ले,
बिखरे से बाल मेरे कभी काले घने कोमल थे,
पर जबसे पड़ी उसकी काली नजर,
कुछ दुनिया डरावनी सी लगने लगी,
खुद का किया श्रृंगार अब अच्छा नहीं लगता,
अब बिखरे हुए बाल ही मेरी पहचान है,
क्योंकि चल रही मेरी सांसें है,
शरीर तो कब का मृत हो गया,
जब से उस हैवान की पड़ी मुझ पर नज़र है।
