डरावना
डरावना
सहज तो तब भी नहीं था
जब तूने अपने मन पसंद साथी के
साथ घर छोड़कर जाना चुना था
इज्जत दांव पर लगी थी हमारी..
अच्छा मुझे तब भी नहीं लगा था
जब तूने अपनी मर्जी से
बिन शादी के उसके साथ रहना चुना था
अधिकार और आजादी के नाम पर..
जी हम तब भी नहीं पा रहे थे
जब सुनते थे पीटता है तुझको
रोज होती है क्लेश तेरी इस जिद्द पर
कि मुझे अपना नाम और पहचान दो..
लेकिन बहुत ही डरावना था वो दिन
जब हम ये जाने कि उस दरिन्दे ने
पैंतीस टुकड़े किये मेरे दिल के टुकड़े के
बहुत ही डरावना था सुनना, जानना,
देखना और इस दुःख को झेलना..!!

