डरावना
डरावना
रात का अंधेरा; सन सन बहती हवा,
बिजली की कड़कड़ाहट; बादलों की गड़गड़ाहट;
बंगले में अकेली मैं; बिजली भी छोड़ गई साथ;
डरावनी रात।
दरवाज़े पर ज़ोरों की दस्तक;
घबराहट और डर में साहस न जाने कहाँ गुम गया,
अरे-अरे मोमबत्ती कहाँ गुम गई;
मोमबत्ती हाथ आई तो कहीं सरक गई माचिस;
मिली माचिस तो गुमशुदा साहस ने भी दिये दर्शन।
क्या खोल दूँ दरवाज़ा ?
कहीं भूत तो नहीं ?
नहीं-नहीं भूत तो कुछ होता ही नहीं,
कोई चोर ?
साहस फिर भागने की ताक में,
अबकी बार पकड़ साहस को कस कर
ले जलती मोमबत्ती हाथ में
खोल डाला दरवाज़ा।
चौक गई देख;
खड़े थे पतिदेव सामने,
फिर क्या था……
भागी सिर पर रख पैर
डरावनी रात।

