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Usha Gupta

Horror

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Usha Gupta

Horror

डरावना

डरावना

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रात का अंधेरा; सन सन बहती हवा,

बिजली की कड़कड़ाहट; बादलों की गड़गड़ाहट;

बंगले में अकेली मैं; बिजली भी छोड़ गई साथ;

डरावनी रात।


दरवाज़े पर ज़ोरों की दस्तक;

घबराहट और डर में साहस न जाने कहाँ गुम गया,

अरे-अरे मोमबत्ती कहाँ गुम गई;

मोमबत्ती हाथ आई तो कहीं सरक गई माचिस;

मिली माचिस तो गुमशुदा साहस ने भी दिये दर्शन।


क्या खोल दूँ दरवाज़ा ?

कहीं भूत तो नहीं ?

नहीं-नहीं भूत तो कुछ होता ही नहीं,

कोई चोर ?

साहस फिर भागने की ताक में,

अबकी बार पकड़ साहस को कस कर


ले जलती मोमबत्ती हाथ में

खोल डाला दरवाज़ा।

चौक गई देख;

खड़े थे पतिदेव सामने,

फिर क्या था……

भागी सिर पर रख पैर

डरावनी रात।


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