भयानक रात
भयानक रात
किस किस को याद करूं किस के बारे में क्या सुनाऊं।
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।
याद आती है मुझे 1946 की वो नोआखाली की रात
जब "सीधी कार्यवाही" करने चल पड़े थे हजारों हाथ
एक रात में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया
धर्म के नाम पर इंसानियत को यहां जीते जी मार दिया
हजारों बलात्कार पीड़िताओं का दर्द बयां ना कर पाऊं।
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।
भारत विभाजन के बाद की रातें क्या कम भयानक थीं
बेबस निरीह मजबूरों पर आई वो क्या कम आफत थी
सामूहिक कत्लेआम का वो कैसा खौफनाक मंजर था
क्रंदन आर्तनाद के आगोश में लहू का गहरा समंदर था
लाशों के पहाड़ पर आजादी का झंडा मैं कैसे लहराऊं।
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।
इंदिरा जी की हत्या के बाद की वो रातें क्या भूल पायेंगे
जिंदा जलने वालों के परिजन क्या कभी मुस्कुरा पायेंगे
"मारो काटो" के शोर में अबलाओं की अस्मिता लुट गई
हैवानों के हाथों इंसानियत फिर एक बार जिंदा कट गई
जब शासक शैतान बन जाये तो गुहार लगाने कहां जाऊं।
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।
काश्मीर घाटी में जब धार्मिक उन्माद अपने चरम पर था
हिन्दुओं का जीवन आतंकवादियों की दया पर निर्भर था
पति के सामने उसकी पत्नी की इज्ज़त तार तार कर दी
निहत्थे मासूम बेगुनाह लोगों के खून से झोलियां भर दी
उन नर पिशाचों को आजाद घूमता देख मैं कैसे सो पाऊं।
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।
कार सेवा करने कुछ लोग अयोध्या रेल से जा रहे थे
एस 6 बोगी में सतसंग के साथ साथ भजन गा रहे थे
गोधरा स्टेशन पर बोगी बंद कर उन्हें जिंदा जला दिया
गुजरात दंगों की बर्बरता ने पूरे देश को दहला दिया
राजनीति की पिच पर रचे गये षड्यंत्रों को कैसे भूल जाऊं
कौन सी रात ज्यादा भयानक थी, मैं समझ नहीं पाऊं।।