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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Horror

4.8  

निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Horror

डर

डर

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डर है या घृणा है ये, 

आतंक या तृष्णा है ये, 

कलंक है पुरुषार्थ पर, 

पुरुष के चरितार्थ पर! 


जा रही बिटिया अकेले, 

रात के घने अँधेरे, 

डर नहीं किसी भूत का, 

आत्मा या रूह का, 

भय सताता हैवानियत का, 

मर चुकी इंसानियत का ! 


 सिसकियाँ, हिचकियाँ, 

कुचल रही, मसल रही, 

खोखली कराहती, बेबसी लाचार सी, 

देह की लोलुपता, जिस्म को खरोंचती

अस्मिता बचाने बेटी की, माँ है गुहारती! 


दरिंदगी सवार है, पुरुषत्व शर्मसार है, 

इससे भला भयावह कोई, क्या कथा कोई सार है? 


बेटियों के खून में लथपथ ,

माँ धरा करे प्रहार अब, 

है जल रही मशाल अब, 

मोम की कतारें अब! 


कठोर दंड प्रावधान हो, 

दरिंदे सावधान हों, 

विश्व में यह क्रांति हो, 

नारी सुरक्षा और शांति हो !


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