डगमगाती ज़िन्दगी
डगमगाती ज़िन्दगी
कोई अनकही कोई अनसुनी
न जाने क्या क्या ज़िन्दगी ने दबा रखा है
किस मोड़ पे ठहराव मिलेगा
छुपे लफ्जों में क्या क्या ज़िन्दगी ने छुपा रखा है।
कांधों ने झुकने की इजाजत मांगी है
क़दम भी डगमगा रहे, न जाने क्या बता रखा है।
उतार चढ़ाव जिंदगी में आते जाते रहते हैं
ईश्वर ने मेरी ज़िन्दगी को तो एक खेल बना रखा है।
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का
अधर में अटकी है ज़िन्दगी, सांसों को तूफान बना रखा है।