दायरा
दायरा
मैंने कभी कोई दायरा नहीं बनाया
नहीं रखी कभी कोई शर्त
ज़िन्दगी उसकी आज़ाद थी
मगर उसने बनाएं अनगिनत दायरे
रखीं जीने की अनगिनत शर्तें
मेरी ज़िंदगी उसकी कैद में थी।
अपनी इच्छा से जीने के लिए
उसने कभी , मेरी इच्छा का न किया
अपनी हाँ के लिए उसने,
नही मिलाई कभी मेरी, हाँ में हाँ,
मगर मैंने अपनी एक इच्छा के लिए
उसकी कई अवांछित इच्छाएं पूरी की
उसकी एक हाँ सुनने के लिए
कई अवांछित हाँ को हाँ कहा।
क़तरा -क़तरा समेटती रही
जानें क्यों पोसती रही ऐसे रिश्ते को
जिसने क़तरा-क़तरा मुझे ही
खोखला कर दिया
मगर उसने कभी नही पोसा
कभी नही समेटा कोई रिश्ता,
वह खेलता रहा हैवानियत के खेल,
लेकिन दुनिया के सामने खुद बेचारा,
और मुझे हैवान बना दिया।