'चाँद'
'चाँद'
चांद आज मेरी खिड़की में चुपके से उतर आया है।
बोलो ना आज कौन सा वो जादू साथ लेकर आया है।।
तारों के संग उसने अपना एक खूबसूरत जहां बनाया है ।
चांदनी को ज़मीं पे उसने अँधरों में ख़ूब घुमाया है।।
चांद आज मेरी खिड़की में चुपके से उतर आया है....
चमक अपनी को उसने मेरे कमरे तक, बड़ी बेबाकी से बिखराया है।
जगमगा उठा घर आंगन, उसने जो अक्स दमकता अपना डाला है।।
भूल उठी हूं सारे अंधेरे ज़माने के, गीत होंठों ने प्यार का गुनगुनाया है।
देख चांद के पास का सितारा, मन में जलन का भाव तनिक सा आया है।।
चांद आज मेरी खिड़की में चुपके से उतर आया है....
हमदम समझ के उसको मैंने गले से लगाया है।
चांदनी का इस बात पर दिल थोड़ा सा भर आया है।।
बादलों ने नाराज़गी का नज़ारा कुछ इस तरह दिखलाया है।
ढक लिया चांद को, अंधेरा फिर से मेरे घर में भरमाया है।।
चांद आज मेरी खिड़की में चुपके से उतर आया है।