चाँद की आवाज़
चाँद की आवाज़
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सुनो दिनकर,
चाँद ने तुम्हें पुकारा है !
बहुत देर से,
संग है मेरे साथ,
मेरी उदास रातों को,
कंधा देते हुए !
अब उतरना है उसे,
क्षितिज के उस पार !
जानता है,
उसके अतिरिक्त,
तुम्हारा साथ ही हमें गंवारा है,
तुम्हें चाँद ने पुकारा है !
सुन लो,
उसे इतंज़ार है तुम्हारा,
अपनी विदाई के लिए !