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ठहर जाती है निगाह मेरी उन ठिकानों पे

जहां से आशियाँ के तुमने तिनके उठाये


दरो दीवार से तेरी निसबत का सबब तब जाना

ज़माने भर के तूफ़ान मैंने जब सर पे उठाये


अब याद है बस वही इबारत जो मिट गयी

जिन पन्नों पे कभी तुमने आँसू गिराये


हक़ हो गया कतरे का हर एक मोती पे

समुद्र ने जब कश्ती को रसते दिखाये


तुम्हारे हुस्न की बातें दीवारों से सुनी मैंने

मशक़कत से तुमने जिन पे थे परदे लगाये


शरारत को मकान से मेरे लोगों अलग रखो

मैंने आरज़ुओं के इसमे बहुत शीशे लगाये


आओ कर दूं कुछ अपने नक़श पौशीदा तुम्हारी आंखों में

ये कुछ गहने थे जो मैंने ज़माने से बचाये


ये सुबह फिर ले आयेगी मुझे दुनिया की मंडी में

गला कटना ही है तो क्यों न और सो जाये


ये आंखों की नमी जावेदा तो हो न पायेगी

अगर तू अऱश से थोड़ी सी मय बरसाये


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