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Habib Manzer

Drama

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Habib Manzer

Drama

चाहिए

चाहिए

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इश्क, चाहत, मोहब्बत, अगर चाहिए,

हौसला, ज़िंदगी, और जिगर चाहिए।


किसको हसरत है, ग़म की बताओ ज़रा,

किसको खुशियाँ, यहाँ मुख़्तसर चाहिए।


किसकी चाहत नहीं, मंज़िलो को यहाँ,

कोशिशों में मुसलसल, सफर चाहिए।


चाँद दीदार होता रहे, उम्र भर,

चाहतो में हसीन, बस नज़र चाहिए।


किस शहर में, मुसाफिर भी ठहरे बता,

हर दीवाने को, यादों का घर चाहिए।


आज भी ख्वाब में, किसका चेहरा दिखा,

मुझको दिल में तेरे, अब बसर चाहिए।


हर बलायें मेरी माँ ने, खूद ले लिया,

तेरी चाहत में, उतनी असर चाहिए।


मैं बुलाता रहूँ, उम्र भर बस तुझे,

यूँ यकीन आज भी, अब इधर चाहिए।


कैसा मंज़र हसीन, चाहतों का समा,

दिल को तेरे वफा में, कसर चाहिए।


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