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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Classics

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy Classics

बूढ़ा बरगद,बुजुर्ग

बूढ़ा बरगद,बुजुर्ग

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बूढ़ा बरगद, बुजुर्ग आजकल परेशान है

अपनों की हरकतों से दोनों अनजान है

मतलब निकला, अब दोनों को काट रहे,

बूढ़ा बरगद, बुजुर्ग अपनों से बड़े हैरान है


उन दोनों ने तो सबका ही भला किया है,

अपने-पराये सबको ही आश्रय दिया है,

आज वो लोग कर रहे उनका कत्लेआम है

बूढ़ा बरगद, बुजुर्ग आजकल बड़े परेशान है


बूढ़ा बरगद और हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग,

दोनों ही रो रहे फुट-फुटकर एक जान है

दोनों को लोगों ने उपयोग कर छोड़ा दिया

दोनों आस्तीन के सांपों से बड़े परेशान है


जब-जब कोई आईना बदरंग हुआ है,

लोगों ने पत्थर फेंक दिया उसे निशान है

आज बुजुर्ग-बरगद की स्थिति समान है

दोनों पे चलाये अपनों ने फ़िझुल बाण है


समय रहते साखी सुधार हो जाये अच्छा है

नहीं तो खुशी का न होगा नामोनिशान है

बूढे-बरगद, बुजुर्ग तो अनुभव का वरदान है

इनके बिन संयुक्त परिवार में न होगी जान है।


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