बुझता चिराग
बुझता चिराग
निराश थोड़ा उदास
ऐ जिंदगी फिर भी तेरे पास हूं
करने वाले तो कर रहे सब कुछ
लेकिन अभी तक नियत साफ
मैं अंतर्मन से पाक हूं।।
शीश झुकाएं खड़ा हूं दर पर
फिर क्यूं एक गहन विश्वास के साथ हूं
वक्त बदलते सुना सभी का
ले मैं उस बदलते वक्त की फरियाद हूं।।
अपने कर्म तो सभी है करते
क्यूं मैं जीत-हार में ख़ास हूं
कैसे झूठ, फरेबी सदा सफल हो जाते
क्यूं हार का सदा मैं दास हूं।।
असफलता की सीढ़ी चढ़ता हर दिन
जानें किसकी अंतिम आश हूं
असहनीय पीड़ा से गुजरता हर पल
शायद अंतिम इस नीरस जीवन का प्रयास हूं।।
अच्छा किया या बुरा जीवन में
मेरे कर्म की मैं एक अनसुनी आवाज़ हूं
देर है अंधेर नही में
शायद एक बुझता हुआ चिराग हूं,
लेकिन अभी तक नियत साफ मैं अंतर्मन से पाक हूं।।