बसंत और नारी
बसंत और नारी
फूलों से खूब सजी प्रकृति है, जैसे चूनर धानी।
महक रही है आम्र मंजरी, गुंजन भ्रमर की बानी।
सरसों के पीले फूलों से, सज रही धरा सुहानी।
पेड़ों की डाली डाली में, कोपल नई मुस्कानी।
सुन्दर सुंदर परिधानों में, सज रही सबरी नारी।
प्रकृति छटा की छाप निराली, आती बारी बारी।
लिए बसंती पवन का झोंका, आँचल उड़ उड़ जाए।
नाचे मन का मोर मयुरा, गीत खुशी के गाए।
कर श्रृंगार चली चंचल सी, सुंदर सुघड़ सुहासिनी।
भीतर भाव भरे बसन्ती, मन दौड़े जैसे हिरनी।
छटा निराली अजब बसंती, मनवा उड़ उड़ भागे।
गीत मीत के गाए मनवा, रतियन में खूब जागे।
अमुआ की डाली बैठ कोयलिया, गीत बसंती गाए।
नवयौवन की लेे अंगड़ाई, चुनरी उड़ उड़ जाए।
बसंत बहार का लिए संदेशा, गुन गुन भौंरे गाए।
खिली बसंती कलियां जब जब, नव यौवन मुस्काए।
मदमस्त परिंदे भर के मस्ती, नीड़ नया है बनाते।
बैठ के पेड़ों की डाली में, कल कल कलरव करते।
बड़ा सुहाना समय बसंती, रंग कई खिल जाते।
दिल में फूल खुशी के खिलते, मन में मस्ती भर जाते।