बंधन प्रेम का
बंधन प्रेम का
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बिन फेरे हम तेरे
प्रीत के बादल जब छाए हो घनेरे,
हो जाए दूर जब मन के अंधेरे।
कैसी बारात? कैसा ब्याह?
एक दूजे के लिए बस समर्पण का भाव।
तक बिन फेरे हम तेरे।
बंधन फेरों का नहीं,
ना ही हो सात जन्मों का।
बंधन तो बस दिल का हो,
नाता हो जन्म-जन्मांतर का।
इन्हीं आशाओं को मन में धरे रे
बिन फेरे हम तेरे।
न था गवाह न भीड़ न अग्नि
हवन रे।
फिर भी बिन फेरे हम तेरे
मन के समर्पण में ही बीते जीवन रे।
बिन फेरे हम तेरे।