बेताल
बेताल
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थोप दो लाख
जिम्मेदारी मुझ पर
कोई एक तो
आप भी
निभाते चलो
कब तलक मुझ को
चलाओगे
काँच पे नंगे पाँव
दो कदम
मेरे साथ भी
चल कर देखो
बड़ा अजीब सा
लगता है
जब कभी
पढ़ता हूँ
विक्रम और
बेताल के किस्से
ऐ सुनो आप,
ज़रा कन्धों से
उतरो खुद चलो
मुझे सुकूँ से
चलने दो
यह जो रोज शाम
किलकारियाँ
उठा करती है
तुम्हारे घर से
अरे, किसी शाम
हमें भी
अपने घर
धूप-दिया करने दो
जिन्होंने छोड़ दिया है
करना अब मेरा
इंतज़ार
किसी शाम
उनके चेहरे पे
हँसी खिलने दो
ऐ सुनो आप,
ज़रा कन्धों से
उतरो
किसी शाम
हमें भी
अपने घर
धूप-दिया करने दो
रोज़मर्रा में
ख़ुदग़र्ज़ ना
इतने हो जाओ
खुद मुस्कुराओ
ज़रा हमे भी
ऐसा एक मौक़ा
दे दो।