बचपन
बचपन
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वो बिन पंख हवाओं में उड़ना अच्छा लगता था,
मोहल्ले के दोस्तों संग रहना अच्छा लगता था।
अपनी करतूतों से अपने पीछे दिन भर दौड़ाकर,
शाम को माँ के हाथ से खाना अच्छा लगता था।
बारिश के मौसम में पानी में कूदकर कूदकर,
वो छोटे बड़े बुलबुले फोड़ना अच्छा लगता था।
रोज की पढाई से थककर दोपहर आते आते,
मेज पर सिर रखकर सोना अच्छा लगता था।
पिताजी से जेबखर्च को जिद से पैसे माँगकर,
बाजार से कॉमिक्स लाना अच्छा लगता था।
सर्दी के मौसम में अलाव के सामने बैठकर,
गुड से मूंगफली खाना अच्छा लगता था।
पुराने कपड़ों की ऊन से बना वो रंगबिरंगा,
मेरी माँ के हाथ का जामा अच्छा लगता था।
बेसुरी तेज आवाज में चिल्ला चिल्लाकर,
"आवारा हूँ" गाना गाना अच्छा लगता था।
शाम होते ही बैठ जाते थे सभी चौपाल पर,
उस वक़्त का वो ज़माना अच्छा लगता था।