बचपन के रंग
बचपन के रंग
गुजरते हुए रास्ते से
मासूम बच्चों को
साइकिल के पहिए के
पीछे भागते देखा है
मैंने बचपन को,
खिलखिलाते देखा है
तंग गलियों से बाहर निकलकर
किसी खुले मैदान में, बालसमूह को
कभी क्रिकेट, कभी कंचे, कभी पिट्ठू
कभी गिल्ली डंडा खेलते देखा है
मैंने बचपन को....,
अठखेलियां करते देखा है
गांव से दूर एक शहर में
चाय की दुकान पर बेबस,
शिथिल बालक को अचानक
मालिक की डांट सुनते देखा है
मैंने बचपन को.....,
मजबूर होते देखा है
पार्क में रोज़ घूमते हुए
साइकिल पर सवार
हाथ में बर्गर, दोस्त चार
सोशल मीडिया पर बच्चों को
एक्टिव होते देखा है
मैंने बचपन को.....,
मॉडर्न होते देखा है
घर के अंदर या बाहर
बालमन को लालच देकर
अजनबी और परिचित समेत
कोमल कलियों पर कई बार
गंदी नज़र डालते देखा है
मैंने बचपन को....,
सहमते देखा है
तोतली बोली में बच्चों को
तरह-तरह के मुंह बनाकर
छोटे-छोटे हाथ नचाकर
अपनी बात सुनाते देखा है
मैंने बचपन को....,
संवरते देखा है
कभी टीचर बनकर
कभी डॉक्टर बनकर
कभी कुक बनकर
कभी पुलिस बनकर
बच्चों को किरदार निभाते देखा है
मैंने बचपन को......,
चहकते देखा है
एकल परिवार में
जन्मे बच्चों को
दादा-दादी, चाचा-चाची
ताऊ-ताई ,बुआ व बाकी लोगों से
आजकल दूरी बढ़ाते देखा है
मैंने बचपन को.....,
सीमित होते देखा है
हर समय मोबाइल हाथ में
खाते-पीते, टीवी साथ में
ज़रा-सी बात पर बच्चों को
रूठते-चिल्लाते देखा है
मैंने बचपन को......,
धूमिल होते देखा है
दिनभर काम करने के बाद
मां की मदद करने के लिए
पिता की बात सुनने के लिए
भूख से बेहाल बालक को
व्याकुल होते देखा है
मैंने बचपन को.....,
चिंतित होते देखा है।
