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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

बचकर चलना भला

बचकर चलना भला

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सर्प के कितने मुंह, एक, कुछ के दो 

और तुम्हारे, एक मुंह में भी हजार मुंह 

सामने कुछ, पीछे कुछ, दिल में कुछ,

दिमाग में कुछ और कब बदलकर नया मुंह लगा लो 

इसका भी भरोसा नहीं 

तुम्हारा क्या करें, तुम्हें कुचल दें, जला दें 

जैसा करते हैं लोग सांप को देखकर 

लेकिन इससे भी शायद कुछ हो 

इतना जहरीला आदमी, मरकर भी कहां मरता है 

तुम तो आत्मा की अमरता का ज्ञान रखते हो 

क्या पता भूत बनकर किसी आदमी में प्रवेश कर या फिर

जन्म लेकर न जाने और कितने विषैले निकलो 

तुमसे दूर रहना, बचकर चलना ही भला 



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