सन्नाटा
सन्नाटा
अब ना तो वो तपिश है उस महर में,
और ना कोई शोर है उस नहर में,
बस सन्नाटा पसरा हुआ है हर शहर में,
बस वहीं बात कहने चाहता हूं
मैं अपनी इस बहर में,
ना जाने किस बात का कहर
पल रहा है सबके जहन में,
तबाह कर रहें हैं जो हम सब
कुछ इस नफ़रत की लहर में,
देख ख़ुदा तेरे बन्दों का,
बसा बसाया घर जल रहा है,
ना जाने ये इंसान,
किस सफ़र में ज़फ़र होने चल रहा है,
हर तरफ बस ख़ौफ का ही
मंज़र पल रहा है,
शाम ओ सहर किसी ना
किसी का दहर जल रहा है।