खिले गुलाब सा इश्क़
खिले गुलाब सा इश्क़
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वक़्त चला है आब सा, जो हमेशा रहता शिताब सा
कभी ना हुआ जो ताब सा, आंखों में हैं एक ख़्वाब सा,
दिल लिए मैं नाव सा, हौसला भरा एक शाब सा,
लफ्ज़ कहूं में राब सा, जिसमें नशा है शराब सा,
बरसे नैन सहाब से, हुए जो सवाब सा,
इश्क़ किया था मैंने भी तुमसे, एक खिले गुलाब सा ।
