इश्क़
इश्क़
जब उनके गेसुओं के साए में डूबी मेरी हर शाम हुई
तब उनकी शोख अदाओं से ये धड़कनें भी बेलगाम हुई,
एक उनकी दीद की खातिर हमने, दिल को अपने तरसाया है
एक उनकी रुसवाई के डर ने, रातों में हमें जगाया है,
फिर उनके मय भरे प्यालों ने ही, सब कुछ हमें भुलाया है
और उनकी झुकी निग़ाहों ने तब, आशिक़ हमें बनाया है,
पर एक पल की दूरी ने भी उनकी, यादों में हमें झुलसाया है
और उनके अश्कों को देख सदा, जी हमने अपना जलाया है,
और उनके रुखसारों ने भी कभी, जब हमको पास बुलाया है
तब उनकी उस अदा ने भी हमको, हर लम्हा बड़ा सताया है,
उनके दिल के दर्द को देख, दिल हमनें अपना तड़पाया है
पर उनकी बचकानी हरकतों ने, हमें कुछ इस कदर लुभाया है,
जब रूठा करते थे हम उनसे, सदा उन्होंने ही हमें मनाया है,
के उनके पीछे हर एक लम्हा, इस ज़िंदगी का अब अपनी, हमको करना ही ज़ाया है,
मेरे इन लफ़्ज़ों से शायद इश्क़ मेरा, हो सकता अब नुमाया है।