घोंसले से दूर
घोंसले से दूर
परिंदे जो दाने की तलाश में दूर निकल जाते हैं,
लोग कहते हैं, वो बदल जाते हैं,
कोई कहता है अब उन्हें पंख लग गए,
अब ना आएंगे कि नए अरमान जग गए,
नया आसमान उन्हें भा गया है,
नई फिज़ा में उन्हें मज़ा आ गया है,
वो समझते नहीं कौन जाएगा दूर घर से,
अपनी मिट्टी , अपने गांव , अपने शहर से,
दाने मिल जाएं अगर घोसलों के पास,
कोई क्यूं करे दूर उनकी तलाश,
उनका भी दिल करता है कि अपनी हवा में सांस लें,
यहीं आस पास दाने का ज़रिया तलाश लें,
उन्हें भी महसूस होती है अपनों की कमी,
याद आती है अपनी खूबसरत ज़मीं,
मगर जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं,
वो उड़ते हैं और दूर निकल आते हैं,
दानों की तलाश में उनके दिन बीतते हैं,
लौटने की उम्मीद में ही वो जीते हैं,
मगर जिस दिन उनका दामन दानों से भर जाएगा,
हर परिंदा वापस घोंसलों की ओर उड़ जाएगा।