जी रहे हैं
जी रहे हैं
स्वप्न और यादों में जी रहे हैं,
रूह के राजा, हुसनों के प्यादों में जी रहे हैं।
बचपन की गलियों में करते थे सपनों के इंकलाब,
बड़े क्या हुए, वो फ़रियादी हुए जी रहे हैं।
प्यार को उन्होंने टाला कहके बुरी बला,
सुना है किसी के प्यार में पड़, जज़्बाती हुए जी रहे हैं।
जो उड़ते रहे बरसों बरस आज़ाद गगन में,
पिंजरा बड़ा किया तो उसे आज़ादी कहे जी रहे हैं।
फ़लसफ़ा था जिनका लहरों से उलट बहना,
उलट बोल नहीं पाते, कर चाटुकारी जी रहे हैं।
सांस चल रही है, पर ज़िंदा नहीं लगते,
लोग क्यों बस मौत की तैयारी में जी रहे हैं।
