बाबूल का अँगना
बाबूल का अँगना
छोड़ बाबूल का अँगना
संग चली तोरे सजना।
आँगन छुटा मय्यर का
बतला कैसे छोड़ूँ दामन यादों का।
रीत है दुनिया तेरी निराली
जन्मी कहाँ और मरे कहाँ नारी।
बाबूल तू है हरजायी बड़ा
डोली के संग अर्थी भी भिजवा डाली।
वाह रे जमाने तेरा दस्तूर
खुशियाँ तोले सजा जेवर पाँव नुपूर।
कैसे मैं इठलाऊँ सज-धज आज
जानूँ खुशियाँ पल भर की है उधार।