औरत
औरत
औरत ज़िंदगी में बिखेरती है रोशनी बनकर महताब।
औरत अगर देती साथ तो हक़ीक़त बन जाते ख़्वाब।
वह होती जिस्म से नाज़ुक और अदाएं होती दिलकश।
सबको करती गुलज़ार, औरत को है रहती कशमकश।
नाज़नीन इतनी है होती, फीका लगता गुलाब का फूल।
इरादों की मजबूत होती, डटकर निभाती रहती उसूल।
सबकी मदद और सबके दुख बांटने को बेताब मिलती।
ख़ुद दर्द सहती रहे और रुखसार पर मुस्कान खिलती।
