अल्फ़ाज़ की आवाज़
अल्फ़ाज़ की आवाज़
बड़े लोगों की सच्चाई हमें कुदरत बताती है
रखें प्यासा समंदर तिश्नगी नदियाँ बुझाती है।
करो जब दोस्ती तो अपने क़द को देखकर करना
मिली गंगा समंदर में तो कब गंगा कहाती है।
अगर ये भूख ना होती तो क्यों कर रक़्स ये होता
यही वो आग है जो रात दिन सबको नचाती है।
रची है साजिशें ऐसी कि सच को झूठ कर डाला
उसी झूठे को सच्चा मान दुनिया सर झुकाती है।
कहे तहजीब मुद्दत से कि बेटी रूप है माँ का
जन्म लेने से पहले क्यों ये फिर दफनाई जाती है।
अंधेरे नफरतों के छू नहीं सकते हमारा दर
सदा रोशन रहे वो घर जहाँ माँ मुस्कुराती है।
यहाँ खामोशियाँ तेरी सुने क्या 'आरज़ू' कोई
जहाँ अल्फाज़ की आवाज़ भी मुश्किल से आती है।।
