आख़िर किस लिए
आख़िर किस लिए
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हो गया नाकाम आख़िर किस लिए,
अम्न का पैग़ाम आख़िर किस लिए ।
क्या यही है सच बयानी का सिला,
उफ़ ! ये क़त्लेआम आख़िर किस लिए ।
ख़ौफ़ से तेरे न सच बोला कोई,
फ़िर मचा कोहराम आख़िर किस लिए ।
दल बदल कर दल सभी दल दल हुए,
वोट दे आवाम आख़िर किस लिए ।
चाँद है बेनूर फिर भी है निजाम,
अंजुमन गुमनाम आख़िर किस लिए ।
ज़िंदगी भर रक्स करके भी यहाँ,
रंज सुब्ह-ओ-शाम आख़िर किस लिए ।
'आरज़ू' आग़ाज़ कर जब साथ रब
सोचना अंजाम आख़िर किस लिए ।