उसके नाम से
उसके नाम से
जब जब गले मिलेंगे यूँ पंडित इमाम से,
गौहर मिलेंगे देश को अब्दुल कलाम से।
ऐसी हवा चली है सियासत की आजकल,
कोई ख़फ़ा अज़ां से कोई राम-राम से।
मेहनत से हुई शीश महल जब ये झोपड़ी,
पत्थर उछालता है कोई इंतक़ाम से।
कल रात जाग-जाग सुलाई थी उसकी याद,
फिर याद आ रहा है वही आज शाम से।
कुछ इस तरह बसा है वो मेरे वज़ूद में,
मुझको पुकारता है कोई उसके नाम से।
मुमकिन नहीं था जिनके बिना घर सँवारना,
बाहर किए गए हैं वो बद इंतजाम से।
पाया है बुज़ुर्गों ने तज़ुर्बा अभी नया,
रखने लगे हैं काम वो बस अपने काम से।